आज आपसे राजस्थान के एक ऐसे परिवार को लेकर चर्चा करेंगे जो काफी ज्यादा अनोखा समुदाय से है.इस परिवार के सदस्यों में व्यक्तियों का नाम हिंदू मुस्लिम दोनों के धर्म अनुसार रखे गए हैं. और त्योहार ईद दिवाली भी मनाए जाते हैं. वही निकाह से पहले गणेश जी की स्थापना भी की जाती है.हमारे हिंदुस्तान में एक ऐसा इलाका है जो यहां के रहने वाले तो सभी धर्मों के उपासक हैं. यह सभी मंदिरों में देवी देवताओं की पूजा करते हैं. मस्जिद में सजदा भी करते हैं. एक बेटे का विवाह करते हैं दूसरे का निकाह पढ़ाते हैं. तालमेल ऐसा है कि बड़े बेटे का नाम लक्ष्मण है तो छोटे का सलीम. बेटियों में बड़ी बेटी का नाम चेतना तो छोटी सिमरन पहनावे में हिंदू मुस्लिम का कोई भी भेदभाव नहीं.

आपको बतादे राजस्थान के 4 जिलों अजमेर, राजसमंद, भीलवाड़ा और पाली जिले के मध्य बसे पहाड़ी क्षेत्र में ब्यावर के आसपास 1 बिरादरी है काठात.जोकि करीब 10 लाख की आबादी की इस खेतीहर जाति ने तीन इस्लामिक रसमें अपना ली हैं.1,खतना कराना 2 हलाल का खाना 3 दफनाना इसी का पालन करते हुए यह ईद भी बनाते हैं. और होली दिवाली भी रक्षाबंधन भी मकर सक्रांति में हिंदू पर्व भी धूमधाम से मनाए जाते हैं. होली पर खूब रंग खेला जाता है. नवजात बच्चों की ढूंढ होती है दिवाली पर हर घर रोशनी से रोशन होता है.इस परिवार में नामों की बात भी अलग और अजीब है. पुरुषों के नाम रामा खा लक्ष्मण खा भवरु खा पूरण खा जैसे भी हैं. तो कोई तेजा सरदार सिंह विशाल सिंह जो मुस्लिम धर्म के साथ हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करते हैं.वहीं महिलाओं के नाम नहीं बदले गए हिंदू परंपरा के नाम सीता,लक्ष्मी,पतासी,सुनीता,गंगा, जमुना है. इतना बदलाव होने के बाद भी बहुसंख्यक कठातो में ना पुरुषों का नाही महिलाओं का पहनावा बदला पुरुष सिर पर पगड़ी और धोती पहनते हैं. महिलाएं घागरा ओढनी और कुर्ती कांचली का लिबास धारण किए रहती हैं.इतने बदलाव के बाद इस बिरादरी ने शादी की रस्में निकाह को अपना लिया. लेकिन निकाह से पहले विनायक स्थापना कलश पूजा और हल्दी की रसमे में दिल से नहीं छोड़ पाए नियमित नमाज पढ़ने रमजान में रोजा रखने वाले लोग ही हैं.बाहरी प्रदेशों से आ रहे कुछ मौलवी यहां लिबास बदलने पर जोर दे रहे हैं. यूपी और बिहार से कुछ जमात के लोग यहां के मस्जिद पर कब्जा करना चाहते हैं.जिससे यहां रहकर इस बिरादरी का हुलिया भी बदल सके.

दफनाने और जलाने को लेकर यहां विवाद खड़े हुए हैं रोल पुरा गांव के कुंवर सिंह की अचानक मौत हो गई.दोनों बेटों में विवाद हो गया बड़ा कह रहा था. दाह संस्कार करेंगे छोटा दफनाने पर अड़ गया. विवाद को देखते पुलिस आ गई मामला बड़ा खबर पुलिस अधीक्षक तक पहुंचे.उन्होंने बीच का रास्ता निकाला उन्होंने कहा अमृत की पत्नी से पूछ लो पुलिस मृतक की पत्नी के पास पहुंची उसने पुलिस को बताया मेरे पति ने मरने से पहले मुझे कहा था उन्हें दफनाना पुलिस ने पत्नी के कहे अनुसार पूर्ण सिंह को दफनाने का निर्णय सुना दिया.इस बदलाव का इलाके में विरोध नहीं है ऐसा नहीं कठात बरादरी में भी दो फाड़ है जो लोग इस परंपरा को नहीं मानते.वह स्पष्ट तौर पर कहते हैं हमारी बहादुर कौम की फजीहत हो रही है. इसे रोके तो कैसे रोके लक्ष्मण सिंह कटात ने कहा पहले हमारी कौम में फेरे ही होते थे यह निकाह कहां से आया. दोनों धर्मों को बराबर रखने के लिए बाप एक बेटे के फेरे करा देता है तो दूसरे का निकाह. अब सवाल करते हैं आखिरी यह सब कब तक चलेगा और कैसे चलेगा.आपको बता दें ब्यावर के संस्थापक अंग्रेज कर्नल एडवर्ड डिक्शन ने रावत मेहरात और काठातो की बहादुरी को देखते हुए ब्यावर का नामकरण ही कर दिया. बी अवेयर अर्थात क्षेत्र से गुजरते समय सावधान रहे इनकी गिनती धड़ायती जातियों में भी रही है.हम कठात लोग हिंदू धर्म भी मानते हैं मुस्लिम धर्म भी मानते हैं इस्लाम के तीन नियमों से बंधे हैं खतना कराना, हलाल का खाना मरने के बाद दफनाना इन तीन बातों का पालन इस्लाम के तहत करते हैं. जबकि हिंदू धर्म के अनुसार सत्संग भी किया जाता है.मंदिर जाते हैं शादी विवाह के अनुसार फेरे होते हैं. निकाह भी पढ़ते हैं बरसों से हमारी यही परंपरा है. हमारी शादी सभी रावत जाति में होती थी. मां हिंदू होती थी तो पिताजी मुस्लिम धर्म को मानते थे हम सभी कन्वर्ट हुए हैं.मुस्लिम धर्म अपनाने से पूर्व हम रावत राजपूत जाति से संबंधित थे.करीब 700 साल पहले हम कन्वर्ट हो गए इसके बाद इस्लाम धर्म ग्रहण करने के बाद यह परंपरा परंपरा चल रही है. मेरे पिताजी के निकाह हुआ जबकि मेरे फेरे हुए थे. होली दिवाली मनाते हैं हिंदू लोग जैसे मनाते हैं होली से 1 माह पहले उसे ख़ुटा लगाकर खड़ी कर देते हैं उसी उल्लास के साथ मनाते हैं.यह शिवाजी की पूजा करते हैं रामदेव जी को पूजते हैं हनुमान जी से बल भी मांगते हैं. रामदेवरा की पैदल यात्रा भी करते हैं. घरों पर हिंदू देवी देवताओं रामदेव जी के ध्वज लहराते हैं.सांप्रदायिक तनाव से दूर से लेकर में किसी को यह पता नहीं यहां फसाद कब हुआ. पूछने पर शिवपुरा घाट गांव के नंबरदार बाबू कट्ठात पटेल ने कहा हमारा किसी से वैमनस्य नहीं हैं.सब हमारे और हम सब के हैं इसी गांव के प्रसिद्ध शिव मंदिर के पुजारी भी गाज़ी काठात है.